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हिन्दी दिवस

हिन्दी दिवस (नवगीत) ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ हिन्द  देश  के  हैं  हम वासी,                     हिन्दी सबकी जान हैं। अपनी संस्कृति जीवित इनसे,                      इनसे ही पहचान हैं।। संस्कृत से उद्गम यह भाषा,                    जीवन यही सँवारती। बने मातृ भाषा जन- जन की,                     चलो उतारें आरती।। देवनागरी लिपि है सुन्दर,                हम सबको अभिमान हैं। हिन्द देश के हैं हम वासी..........                     सहज सरल भाषा है हिन्दी,                        वर्णों का संसार है। स्वर-व्यंजन से शोभित है यह,                       शब्दों का भंडार है।। राष्ट्रगान का मान दिलाती,                    भारत की यह शान हैं। हिन्द देश के हैं हम वासी.............. तुलसी मीरा की वाणी है,                 ऋषि मुनियों का सार हैं। हिन्दी  में  उर्दू-अंग्रेजी,                      मिल पाये सत्कार हैं। विश्व पटल पर साथ चलें हैं,                     करते सब गुणगान हैं। हिन्द देश के हैं हम वासी............... ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ रचनाकार:- बोधन राम निषादराज"विनायक" सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ

बाल कविता संग्रह- चन्दा मामा

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बाल कविता संग्रह 2021 (चन्दा मामा) (छत्तीसगढ़ी मात्रिक रचना) ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ (1) सरस्वती दाई दाई    ओ     वरदान दे। वीणा  के  सुर  तान दे।। मँय  अड़हा  हँव शारदा, मोला   थोकन   ज्ञान दे। आखर  जोत  जलाय के मोर  डहर  ओ  ध्यान दे। जग मा नाम कमाय बर, मोला  कुछ  पहिचान दे। तोरे     चरन     पखारहूँ, सेवक  ला ओ  मान दे।। ~~~~~~~~~~~~~~~ (2) गुरु वंदना पइँया   लागँव   हे  गुरुवर। रद्दा   रेंगँव   अँगरी   धर।। चरण - शरण मा आए हँव। तुँहरे  गुन  ला   गाए  हँव।। मँय  अड़हा  अज्ञानी  जी। दौ  अशीष  वरदानी  जी।। जग   के    तारनहारी  जी। जावँव मँय  बलिहारी जी।। पार   लगादौ   नइया  जी। गुरुवर लाज  बचइया जी।। ~~~~~~~~~~~~~~~~ (3) हाथी दादा पहन   पजामा   हाथी  दादा। आमा  टोरय  मार  लबादा।। आमा  हा   गिरगे   पानी मा। मँगरा के  जी  रजधानी मा।। मँगरा  धरके  सुग्घर  खावय। हाथी दादा  बड़  चुचवावय।। टप टप टप टप लार बहावय। मँगरा पानी  दउड़  लगावय।। हाथी  मँगरा  काहन  लागय। भीख दया के माँगन लागय।। ~~~~~~~~~~~~~~~~~~ (4) गोलू भोलू रोज  मुँदरहा  कुकरा  बोलय। चिरई चुरगुन हा मुँह खोलय।। लाली  लाली   दिखै

विघ्नहर्ता गणेश

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विघ्नहर्ता गजानंद (गीतिका गीत) ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ 2122 2122 2122 212 विघ्नहर्ता श्री गणेशा,देव तुम संसार के। लाज तेरे हाथ में अब,दीन हम लाचार के।। प्रार्थना स्वीकार करना,हे गजानन दास हम। भक्ति करते हैं तुम्हारी,रख हृदय विश्वास हम।। भक्त तेरे आज दर पे,आ गये थक हार के। लाज तेरे हाथ में अब,दीन हम लाचार के।। बुद्धि के तुम हो प्रदाता,ज्ञान हमको दीजिये। कष्ट जो भी हैं हमारे,आप सब हर लीजिये।। विघ्न बाधा दूर कीजै,आप सेवकदार के। लाज तेरे हाथ में अब,दीन हम लाचार के। हे तनय गौरी शिवा के,काम बिगड़े सब करो। दुःख हर्ता तुम विनायक,दुःख जन-जन के हरो।। द्वार तेरे हैं खड़े हम,जिंदगी से हार के। लाज तेरे हाथ में अब,दीन हम लाचार के। ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ रचनाकार:- बोधन राम निषादराज"विनायक" सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

जग ले सरग नँदावत हे

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जग ले सरग नँदावत हे (लावणी छंद) ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ जम्मों रुखराई ठुड़गा अब,                      हरियर पेड़ कटावत हे। सुख दे दिन अब सपना संगी,                     जग ले सरग नँदावत हे।। पेड़ लगाबो मिल के हम सब,                      पर्यावरण बचाबो अब। लइका जइसे सेवा करबो,                  तभे सुखी रह पाबो अब।। बरसा कइसे होही भइया,                      बादर घलो सुखावत हे। जम्मों रुखराई ठुड़गा अब,............. बर-पीपर अउ आमा अमली,                   गहना हावय भुइयाँ बर। सुरताये बर इही ठिकाना,                      जाँगर के पेरइया बर।। बिन रुखवा के सबो डोंगरी,                    बंजर बन चिकनावत हे। जम्मों रुखराई ठुड़गा अब,.............. जीव जन्तु के आज बसेरा,                  मनखे दिन-दिन टोरत हे। जघा-जघा मा पर्वत घाटी,                      ढेला पथरा फोरत हे।। कुआँ बावली नदिया तरिया,                    बँधिया घलो अँटावत हे। जम्मों रुखराई ठुड़गा अब,.............. ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ रचनाकार:- बोधन राम निषादराज"विनायक" सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)                                   

श्रम की महिमा

श्रम की महिमा (16/13) ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ श्रम की महिमा क्या बतलाऊँ,                          श्रम से ही संसार है। श्रम से ही फल मीठा मिलता,                     श्रम जीवन आधार है।। श्रम न रहे गर तो क्या होगा,                         ऊँचे बाँध ढलान का। बड़े-बड़े पुल-सड़क कहाँ से,                       कैसे स्वप्न मकान का।। श्रम से ही उद्योग हमारा,                         श्रम से ही व्यापार है। श्रम की महिमा क्या बतलाऊँ............ हल न चलें खेतों में सोंचों,                    सोने का फिर तोल क्या। भूखी मर जायेगी दुनिया,                  पानी का फिर मोल क्या।। मेहनती इंसान वही है,                       जिसमें  धैर्य  अपार है। श्रम की महिमा क्या बतलाऊँ............. श्रम की पूजा जो हैं करते,                         खुश होते भगवान है। खून पसीने से धरती को,                          सींचे वही महान है।। श्रम से ही धरती हरियाली,                          पतझड़ बने बहार है। श्रम की महिमा क्या बतलाऊँ............. ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ रचनाकार:- बोधन राम निषादराज"विनायक" सहसपुर लोहारा,जिल

ममता का सागर

माँ ममता का सागर (नवगीत) ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ माँ मेरी ममता का सागर,                   जग में तुम्हीं महान हो। मेरा सब कुछ है तुमसे ही,                     ईश्वर का वरदान हो।। मुझे धरा पर लाने वाली,                    रखती आँचल छाँव में। होती है तेरी पूजा माँ,                      काँटा गड़े न पाँव में।। स्नेह सुधा बरसाने वाली,                           ऐसा  हिंदुस्तान हो। माँ मेरी ममता का सागर,.............. इनकी पकड़ ऊँगली मैंने,                     चलना सीखा प्यार से। दूध पिलाकर माँ ही मेरी,                     जोड़ दिया परिवार से।। बचपन पायी ममता पाया,                       देव तुल्य भगवान हो। माँ मेरी ममता का सागर,.............. प्रेम मयी करुणा की मूरत,                       सकल ज्ञान भंडार है। तेरे ही चरणों में माता,                          मेरा यह संसार है।। मेरा यह सम्मान तुम्हीं से,                      तुम मेरा अभिमान हो। माँ मेरी ममता का सागर,............... ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ रचनाकार:- बोधन राम निषादराज"विनायक" सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

जीवन की बगिया

जीवन की बगिया (लावणी छंद) ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ जीवन की बगिया को यारों,                रखना हरदम हरियाली। फूल खिलेंगे रंग बिरंगे,                आएँगी फिर खुशहाली।। प्रेम प्यार से इसे सींचना,                      कभी न मुरझाने पाये। पतझड़ का मौसम आये भी,                    ये बहार बनकर छाये।। गुलशन महके भौंरा गाये,                   कोयल कुहके मतवाली। जीवन की बगिया को यारों............ चमन बने घर अपना सारा,                   रहे महकता मधुबन हो। पंछी चहके घर आँगन में,                हर्षित अपना तन-मन हो।। रिश्तों में सम्बन्ध समेटे,                      ऐसा हो घर का माली। जीवन की बगिया को यारों..............    जलें प्रेम के दीया बाती,                      स्वर्ग जमीं पर आएँगे।               खुशियाँ झूमेंगी कदमो में,                     घर मन्दिर बन जाएँगे।। हर मुख पर मुस्कान लिए हो,                     भरी रहे सुख की थाली। जीवन की बगिया को यारों................ ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ रचनाकार:- बोधन राम निषादराज"विनायक" सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)